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"आप" के मुसाफिर तू भागना सम्भल के.... !!

"बन्दे है हम उसके हम पर किसका जोर"
अगर ये गीत खुद पर सटीक नहीं लग रहा है तो ये सोचिये  कि इस गीत को अरविन्द केजरीवाल गाये  तो कैसा रहेगा? उदारहरण जीवांत लगता है ! बल्कि उनकी जीत के लिए जनता ने पुरजोर साथ दिया. पर क्या जीत इतनी स्वादिष्ट होती है कि भूख की सीमा ही ना रहे? क्या AAP को देश जीतने की जरुरत है ? या जनता की जुबान से ये कहु कि क्या देश कि कमान आम आदमी पार्टी के हाथ में देनी चाहिए? स्तिथि देखते हुए अभी तो मै खुल्ला विरोध करुगा. हम लोग कही भी काम करे चाहे वो कॉर्पोरेट हो या कोई सरकारी विभाग, पदोन्नति हमारे काम और काम की  गुणवत्ता के आधार पर होती है. केजरीवाल जी अब राजनीति आपका विभाग है, और दिल्ली आपका ऑफिस. नीयत साफ़ है तो आपका पहला काम दिल्ली की नीतियो को सही दिशा और लोगो कि दशा सुधारने का होना चाहिए, काम और काम की गुणवत्ता दिखानी चाहिए, आपको अभी से लोकसभा चुनाव में उतरकर पदोन्नति कि राह में नहीं चलना चाहिए. जब आम आदमी राजनीति में उतरता है तो उसे नौसिखिया कहते है, आपकी पार्टी में तो सभी राजनीति के नौसिखिये है. क्या ऐसा नहीं लगता कि आपने जो चुनावी वादे किये थे उनमे नौसिखियेपन की झलक दिखती है. वादे के मुताबिक बिजली के दाम आधे और पानी तो मुफ्त कर दिया पर ये नहीं बताया गया था कि रास्ता सब्सिडी होगा. आपने भले ही सब्सिडी के आकड़े बहुत कम बताये हो पर विषेशज्ञ लोग तो हज़ारो करोड़ में आँक रहे है. इसका असर तो सरकारी खजाने पर ही पड़ेगा, क्या अर्थव्यवस्था चरमराएगी नहीं? शायद डर आपको भी है इसलिए तीन महीने का समय जोड़ दिया. भ्रष्टाचार मिटाने की जिम्मेदारी आपने आम आदमी के सर ही थोप दी है- कि जाओ अपना करवाओ, और अगर कोई रिश्वत मागे तो स्टिंग कर के सरकार के लिए काम करो !  खैर काम तो होगा या तो आम आदमी का काम हो जायेगा या फिर आम आदमी पार्टी का !

 नौसिखियेपन के और उदाहरण है - किसी से गठबंधन नहीं करेगे, पर किया गया और चोर भी साथ हो लिए. सरकारी गाड़िया नहीं लेगे, आपके नेताओ  ने तो ले ली जब जोर पड़ा तो उतर लिए, सरकारी बंगला नहीं लेगे, लेकिन  ज्यो लिया त्यों वापिस करना पड़ा. आखिर मन इतना क्यों डोल रहा है. क्यों कि अभी परिपक्ता नहीं है. "ऊचे बोल और काम में झोल" कही आप इसका उदाहरण ना बन जाये. केजरीवाल जी मै मानता  हु आप ईमानदार है पर ये भी जानता हु आपकी पार्टी का हर एक नेता केजरीवाल तो नहीं है. आपके सभी नेताओ को खुद को साबित करना होगा, दिल्ली की  राजनीति से बहुत कुछ सीखना होगा, आपको खुद सीखना होगा कि एक प्रदेश को कैसे सुराज दिया जाता है, अपने काम की गुणवत्ता दिखानी होगी, लोगो का विश्वास जीतना होगा, दिखाना होगा कि हां हम देश को भी चला सकते है. फिर मै देखता हु कौन आपको पदोन्नति से रोकता है. अभी मन में बहुत शंकाएँ है, इसलिए इस लोकसभा चुनाव में देश को नयी दुल्हन को सौपने का डर है. अगर फिर भी आप लोकसभा चुनाव लड़ते है तो होगा क्या एक त्रिशंकु सरकार बनेगी. क्या त्रिशंकु सरकार में देश पनप सकता है? "देश को नहीं मिलेगा कोई बल सिर्फ बढ़ेगा तो वो आपका दल" ! जबकि देश को एक स्थिर सरकार की जरुरत है!!

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