मै लिख रहा हु क्योंकि आज मै लिखने को तैयार हुआ, अगर आप पढ़ रहे तो सिर्फ क्युकि आप पढ़ने को तैयार है ! लेकिन हम देख नहीं सकते क्युकि आज हम देखने को तैयार नहीं। ईश्वर, अल्लाह, जीसस, भगवान, देवता सुनते सुनते ३० की दहलीज़ छूने वाला हु, हें ३० ! यकीन नहीं होता ना !! खैर ये मेरी लीला है. आज लीलाधर असल लीलाधरो की खोज में है, और मै ही क्यों ! क्या आपको अपने भगवान् से नहीं मिलना? देखो.... विज्ञान और आध्यात्म की तो बस की नहीं ! मेरे पास बीच का रास्ता है अगर इच्छुक हो !!....... तो आईये मिलते है.
बोलिये "हम बहुत ख़ुद्दार, घमंडी, और बहानेबाज़ी के गोल्डमेडलिस्ट है". अरे बोलिये!! कम से कम १० बार यही बोलिये। यकीन मानिये सुकून मिलेगा और है ही तभी तो इंसान है ! चलिए स्पष्टीकरण भी देता हु, मैंने अनेक लोगो से पूछा, भाई क्या आप भगवान् में विश्वास रखते है, अगर हाँ, तो बताइये वो है कहाँ ? जवाब - वो हर जगह है !!
तुम्हारी कसम बचपन से यही जवाब सुनता आ रहा था। फिर से यही सुना तो मै झुलझुला उठा, फिर पूछा- भाई वो कौन सी जगह है, जहा मै उनसे मिल सकू. बोला - मंदिर, मस्जिद, चर्च सब भगवान् के ही तो घर है जाओ दर्शन कर लो. बस मैंने उस महान पुरुष के हाथ जोड़े और चल दिया। भटकते- भटकते और भी कई उच्चकोटि के जवाब मिले - भगवान्, वो तो ऊपर वाला है वो ऊपर से सबको देखता है. भगवान् तो कण-कण में है, जैसे इस पत्थर में. भगवान् तो दिल में है , सबके दिल में है तुम्हारे भी मेरे भी.
मै घोर असंतुष्ट। कई वर्षो के आत्मंथन, खुद से सवाल-जवाब के बाद आज मै कहता हु कि हम इंसान बहुत ही ख़ुद्दार, घमंडी, और बहानेबाज़ है. मै उस भगवान् की खोज में हु जो दिखते है वो नहीं जो छुपते है. जब इंसान, भगवान् को देख नहीं सका तो उसने उन्हें छुपा दिया। किसी ने मंदिर-मस्जिद में, मूर्ति में, पत्थर में, आसमान में, कण-कण में, दिल में, न जाने कहाँ कहाँ घुसा दिया और ढोल पीटा कि भगवान् दिखते नहीं ..... बहानेबाजी को सलाम !
आज मै अकेला हु ! संतुष्ट भी ! मैंने ईश्वर को खोज लिया है ! हाँ ये मेरा अपना रास्ता है जहाँ उमींद है उसको पाने की, जहाँ कोई बहानेबाजी नहीं बल्कि हर डगर पर प्रयास है. क्युकी आज मैं तैयार हु ईश्वर को देखने के लिए!!
मैं मानता हु वो पहला जवाब - "वो हर जगह है" ! मैं समझता हु कि हमे वही लोग दिखायी देते है जिसमे वही गुण होते, जो हम में होते है. लोभ, माया, मोह, क्रोध, लालच, तृष्णा, प्रेम इत्यादि ये ऐसे गुण है जो किसी के सिखाने से हमारे अंदर नहीं आते. ये तो हमारी इंसानी जमात का हिस्सा है. हाँ हमें जानवर भी दिखाई देते है क्युकी उनमे भी ऐसे गुण होते है. एक नवजात बच्चे को भगवान् का रूप कहते आपने भी सुना होगा। क्यों कहते है ? क्युकी उस बच्चे में ऐसे कोई गुण नहीं होते। जैसे जैसे हम बड़े होते है लोभ, माया, मोह, क्रोध, लालच, तृष्णा, प्रेम इत्यादि के परदे हमारी आँखों पर पड़ जाते है. और फिर हमें इन्ही के समान लोग दिखाई देते है.
तो अगर आप भगवान् को वास्तिविकता में देखना चाहते है फिर आपको ये गुणों -अवगुणों को अपने अंदर से हटाना ही होगा। क्युकि आपके पुज्य में ऐसे कोई गुण नहीं है तभी तो वो इंसान नहीं है !!
और एक बात याद रखिये यदि आपने ऐसा कर लिया तो ये इंसानी जमात आपको भी भगवान मानने लगेगी।
बोलिये "हम बहुत ख़ुद्दार, घमंडी, और बहानेबाज़ी के गोल्डमेडलिस्ट है". अरे बोलिये!! कम से कम १० बार यही बोलिये। यकीन मानिये सुकून मिलेगा और है ही तभी तो इंसान है ! चलिए स्पष्टीकरण भी देता हु, मैंने अनेक लोगो से पूछा, भाई क्या आप भगवान् में विश्वास रखते है, अगर हाँ, तो बताइये वो है कहाँ ? जवाब - वो हर जगह है !!
तुम्हारी कसम बचपन से यही जवाब सुनता आ रहा था। फिर से यही सुना तो मै झुलझुला उठा, फिर पूछा- भाई वो कौन सी जगह है, जहा मै उनसे मिल सकू. बोला - मंदिर, मस्जिद, चर्च सब भगवान् के ही तो घर है जाओ दर्शन कर लो. बस मैंने उस महान पुरुष के हाथ जोड़े और चल दिया। भटकते- भटकते और भी कई उच्चकोटि के जवाब मिले - भगवान्, वो तो ऊपर वाला है वो ऊपर से सबको देखता है. भगवान् तो कण-कण में है, जैसे इस पत्थर में. भगवान् तो दिल में है , सबके दिल में है तुम्हारे भी मेरे भी.
मै घोर असंतुष्ट। कई वर्षो के आत्मंथन, खुद से सवाल-जवाब के बाद आज मै कहता हु कि हम इंसान बहुत ही ख़ुद्दार, घमंडी, और बहानेबाज़ है. मै उस भगवान् की खोज में हु जो दिखते है वो नहीं जो छुपते है. जब इंसान, भगवान् को देख नहीं सका तो उसने उन्हें छुपा दिया। किसी ने मंदिर-मस्जिद में, मूर्ति में, पत्थर में, आसमान में, कण-कण में, दिल में, न जाने कहाँ कहाँ घुसा दिया और ढोल पीटा कि भगवान् दिखते नहीं ..... बहानेबाजी को सलाम !
आज मै अकेला हु ! संतुष्ट भी ! मैंने ईश्वर को खोज लिया है ! हाँ ये मेरा अपना रास्ता है जहाँ उमींद है उसको पाने की, जहाँ कोई बहानेबाजी नहीं बल्कि हर डगर पर प्रयास है. क्युकी आज मैं तैयार हु ईश्वर को देखने के लिए!!
मैं मानता हु वो पहला जवाब - "वो हर जगह है" ! मैं समझता हु कि हमे वही लोग दिखायी देते है जिसमे वही गुण होते, जो हम में होते है. लोभ, माया, मोह, क्रोध, लालच, तृष्णा, प्रेम इत्यादि ये ऐसे गुण है जो किसी के सिखाने से हमारे अंदर नहीं आते. ये तो हमारी इंसानी जमात का हिस्सा है. हाँ हमें जानवर भी दिखाई देते है क्युकी उनमे भी ऐसे गुण होते है. एक नवजात बच्चे को भगवान् का रूप कहते आपने भी सुना होगा। क्यों कहते है ? क्युकी उस बच्चे में ऐसे कोई गुण नहीं होते। जैसे जैसे हम बड़े होते है लोभ, माया, मोह, क्रोध, लालच, तृष्णा, प्रेम इत्यादि के परदे हमारी आँखों पर पड़ जाते है. और फिर हमें इन्ही के समान लोग दिखाई देते है.
तो अगर आप भगवान् को वास्तिविकता में देखना चाहते है फिर आपको ये गुणों -अवगुणों को अपने अंदर से हटाना ही होगा। क्युकि आपके पुज्य में ऐसे कोई गुण नहीं है तभी तो वो इंसान नहीं है !!
और एक बात याद रखिये यदि आपने ऐसा कर लिया तो ये इंसानी जमात आपको भी भगवान मानने लगेगी।
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