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मेरी शरारत !

वो फूल खिली मासूम कली
वो कल, और आज फिर मिली ||

वो म्रगनयनी थी, दूर खड़ी
चन्दन बदन ,आँखे बड़ी
जैसे ही वो पीछे मुड़ी
धक् धक् धक् धड़कन बढ़ी ||


मै गया था खो ख्वाबो में
दिल डूबा था शबाबो मे
फिर झूम झूम के नशा चढ़ा
झुप झुप देखू आँखे गड़ा ||

पीछे से एक आवाज आई
देखो देखो क्या आइटम है भाई
प्यार में धड़कन धीरे धीरे बढती है
आरे आइटम तो अपनी क्लास में ही पढ़ती है ||


इतना सुन हुआ मै खुश
गयी ताकत समझू बुश
अब था क्लास का इंतज़ार
था करना नयनो से प्यार ||

धीरे धीरे मैंने क्लास देखी
अपनी नजरे उस पर फेकी
पलट पलट वो मुझको देखी
पकड़ के कोना, नजरे सेकी ||

जब क्लास में सर पढ़ाते है
वो लाल छड़ी लहराते है
देख छड़ी मुझको, घूर घूर गुर्राती है
वही छड़ी जाने क्यों, देख उसे शर्माती है ||


धीरे धीरे वो मेरे पास को आई
पतली कमर मानो, दियासलाई
अब मै उससे क्या कहू भाई
बस लगे नजर, मेरी राम दुहाई ||



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मै लिख रहा हु क्योंकि आज मै लिखने को तैयार हुआ,  अगर आप पढ़ रहे  तो सिर्फ क्युकि आप पढ़ने को तैयार है ! लेकिन हम देख नहीं सकते क्युकि आज हम देखने को तैयार नहीं। ईश्वर, अल्लाह, जीसस, भगवान, देवता सुनते सुनते ३० की दहलीज़ छूने वाला हु, हें ३० ! यकीन नहीं होता ना !! खैर ये मेरी लीला है. आज लीलाधर असल लीलाधरो की खोज में है, और मै ही क्यों ! क्या आपको अपने भगवान् से नहीं मिलना? देखो....  विज्ञान और आध्यात्म की तो बस की नहीं ! मेरे पास बीच का रास्ता है  अगर इच्छुक हो !!....... तो आईये मिलते है. बोलिये "हम बहुत ख़ुद्दार, घमंडी, और बहानेबाज़ी के गोल्डमेडलिस्ट है". अरे बोलिये!! कम से कम १० बार यही बोलिये। यकीन मानिये सुकून मिलेगा और है ही तभी तो इंसान है ! चलिए स्पष्टीकरण भी देता हु, मैंने अनेक लोगो से पूछा, भाई क्या आप भगवान् में विश्वास रखते है, अगर हाँ, तो बताइये वो है कहाँ ? जवाब - वो हर जगह है !! तुम्हारी कसम बचपन से यही जवाब सुनता आ रहा था।  फिर से यही सुना तो मै झुलझुला उठा, फिर पूछा- भाई वो कौन सी जगह है, जहा मै उनसे मिल सकू. बोला - मंदिर, मस्जिद, चर्च सब भगवान् के ही तो घर है

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