ग्रुपगीरी बड़ा ही ** शब्द है ! पहले तो देशवासियों ने इसे कई धरमो के रूप में अपनाया, फिर राजनीति ने कई पार्टिया बना कर एक और उदाहरण दिया । कुलमिलाकर जहा भी बुद्धिजीवी लोगो का हुजूम होगा वहा ग्रुपगीरी का होना स्वाभाविक बात है, तो भला हमारी क्लास कैसे अछूती रह सकती थी। हमारी क्लास ६० लोगो का एक बड़ा कुटुंब लेकिन हमारा आपसी व्यवहार देवरानी-जेठानी जैसा... ! मेरा ग्रुप बनने में क्लास का पहला दिन और सीटो का महत्वपूर्ण योगदान है . मै क्लास में पहले दिन जिन लोगो के साथ बैठा था वो लोग आज भी मेरे ग्रुप का हिस्सा है...शायद आपके साथ में भी कुछ ऐसा हुआ होगा. फिर अगले दिन जब भी हम कॉलेज गए तो उन्ही चेहरों और सीटो को दुढ़ते थे जिनके साथ हमने पहला दिन गुजारा था . दिन गुजरते रहे, कुछ नए लोग जुड़ते रहे और पता नहीं कब जाने अनजाने में हमारे ग्रुप बन गए . जब कभी लोगो में मन-मुटाव हुआ तो ग्रुप टूटते भी रहे .
आज हमारे ग्रुप इतने मजबूत है की इसमें कोई न्यू एंट्री एंट्री का दरवाज़ा ही नहीं . समझ नहीं आता कि इस बात पर गर्व करू या अफ़सोस ! :(
इसी ग्रुपगीरी कि वजह से हम पिछले चार सालो में चार कदम भी एक साथ नहीं चल पाए... हर बार नए नए प्लान बनाये लेकिन एक बार भी ये सपने में भी सच ना हो पाए... ऐसा क्यों? इसमें दोष किसी शर्मा (प्रतियुश, मनीष) का नहीं, सिर्फ मेरा और तुम्हारा है !
अब जो हुआ सो हुआ गड़े मुर्दे उखाड़ने से कंकाल ही मिलेगा इंसान नहीं ! तो क्यों न कुछ नया करने कि सोचते है.... सुना है एक बार फिर गेट टु-गेदर का प्लान है.... सुन कर तो बड़ी ख़ुशी हुई... लेकिन फिर वही ग्रुप बाज़ी को याद कर के मायूसी के बादल छा गए. आज भी हमारी क्लास में ऐसे लोग है जिन्होंने क्लास के कई लोगो से बात तक नहीं की. अगर हमने इसी माहौल में ये गेट टु-गेदर कर भी लिया तो क्या होगा... लोग अपने अपने ग्रुप में आयेगे, दुसरे ग्रुप से सिर्फ हाय-हेल्ल्लो करेगे... फिर एक एक कोना पकड़ कर अपने ग्रुप में मस्त हो जायेगे. इसमें किसी का गेट-टु गेदर हुआ क्या? इसे गेट टु-गेदर नहीं गेट ग्रुपेदर कहेगे.ऐसी पार्टी करने का कोई मतलब नहीं निकलता जिसमे सिर्फ ग्रुप के लोग गुटुर-गु करते रहे .
हमारा ग्रुप तो मेरे साथ ही रहता है पार्टी रोज होती है और गुटुर-गु कर के बोर हो गए है . कुछ नया करना है तो पहले सभी ग्रुप को तोडना पड़ेगा... और ये काम आपके सहयोग के बिना नहीं हो सकता . मै चाहता हु हम अब जब भी कॉलेज आये तो ये सोच कर आये कि आज हमारा कॉलेज का पहला दिन है, कोई किसी को नहीं जानता है . क्लास में आकर सबसे पहले प्रेम बंधन में बधी सीटो को अलग अलग करे... और हर एक सीट पर वो दो लोग बैठे जिन्होंने आज तक कभी एक दोस्त कि तरह एक दुसरे से बात न की हो और जिनके बीच कुछ मन-मुटाव चल रहा हो . ऐसा करने से आप अपने पडोसी से बात भी करेगे...और सच कहू तो आपको अच्छा भी लगेगा... 3- 4 दिन में सभी एक दूसरे से मिल लेगे और कोई अनजाना- अनजानी नहीं rahega ..:)
उसके बाद हम कही भी पार्टी का प्रोग्राम बना सकते है और लोग भी आयेगे....! बात सुनने से नहीं करने से बनती है आशा करता हु कि जब आप गेट टु-गेदर कही बाहर करने का प्लान कर सकते है तो एक ये छोटा सा गेट टु -गेदर क्लास में करने के लिए आगे जरुर आयेगे. और अगर ये प्लान सफल हुआ तो तो पार्टी के दिन हम इस article के पहले sentence को एक साथ चिल्ला कर पूरा करेगे....:))
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