Skip to main content

आन्दोलन बचायो !

किसी भी आन्दोलन की सबसे बड़ी समस्या मूल उद्देश्य से उसके भटकाव की होती है . अगर आन्दोलन एक लम्बे समय तक अपने उद्देश्यों को जिन्दा रखता है तो सफलता के रंग जरुर दिखेगे. जन लोकपाल आन्दोलन देश में एक आंधी की तरह आया, ये देश का पहला एक ऐसा आन्दोलन है  जो भ्रष्टाचार को उखाड़ फेकने का भरपूर जज्बा रखता है. इस गैर राजनीतिक आन्दोलन ने  भले ही राजनीति को झकझोर दिया हो, और भले ही सरकार ने देश को लोकपाल बिल का आश्वासन दे दिया हो, पर क्या सरकार लोकपाल लोकपाल बिल पारित करना चाहती है ?

      
सच कहू तो मुझे ऐसा नहीं लगता ! सरकार ने अन्ना के १२ दिन के अनशन के बाद लोकपाल पर उनकी शर्तो को मान लिया था , जबकि इन १२ दिनों में शर्तो में कोई फेरबदल  भी नहीं हुआ था. इतने दिनों तक सरकार ने आन्दोलन को भंग करने की पुरजोर कोशिश भी की पर जब दबाव असहनीय हो गया, आश्वासन की हरी झंडी ही आन्दोलन की  घुटन से बचने एक मात्र रास्ता थी. हमने इस आश्वासन मात्र को लोकतंत्र की जीत समझ ली . हालत ये है की आज की स्तिथि देख कर मुझे प्रतीत होता है कि सरकार का टीम अन्ना और देशवासियो को दिया आश्वासन ,मात्र एक युद्धविराम था.  सरकार घुटन से बच कर खुली हवा में सांस लेना चाहती थी, और एक नए सिरे  लड़ाई लड़ने की रणनीति रचने का समय ! कुछ समय तक पुरे देश ने खुशिया मनाई और दीप जलाये. पर कुछ दिनों के भीतर ही आरोप प्रत्यारोप का खेल शुरू हुआ. सरकार के कुछ बडबोले नुमयांदे लगातार अपनी जुबान की चाबुक चलाते रहे, वो अन्ना आन्दोलन को घेरना चाहते थे. और आरोपों के छीटों ने अन्ना के सैनिको के दामन में दांग लगा दिए. थोड़ी बची कुची कसर इस आन्दोलन ने खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मार कर पूरी कर ली.

मुझे जो डर था वही हुआ- आन्दोलन अपने मूल उद्देश्य से भटक रहा था. इस गैर राजनीतिक आन्दोलन ने राजनीति का चोला पहन ही लिया. उदहारण- हिसार लोकसभा उप चुनाव में कांग्रेस का विरोध करना ! हिसार उप चुनाव के दौरान आन्दोलन अपने मूल मुद्दे भ्रष्टाचार को  भूल गया और आन्दोलन  राजनीतिक हो गया , उसका पूरा ध्यान चुनाव में कांग्रेस को हारने पर केन्द्रित था . बाद में मुझे पता चला कि अरविन्द केजरीवाल हिसार से ही है . टीम अन्ना अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी, टीम के सदस्यों के विचारो का  आपस में मेल ना खाने कि खबरे भी सुर्खियों में आयी, कश्मीर मुद्दे पर प्रशांत भूषण के बयान ने भी लोगो रोष बढा दिया. समय ऐसा था कि कोई भी भ्रष्टाचार के मुद्दे कि बात नहीं कर रहा था, टीम का पूरा खेल राजनीति के दायरे में आ गया था. ये सब कही न कही से जनशक्ति को कमजोर कर रहा था , टीम अन्ना की देशवाशियो से पकड़ कमजोर हो रही थी. 

अब जल्द ही टीम अन्ना को इन समस्याओ से उबरना चाहिए. या तो टीम के सदस्यों का अपना दामन साफ़ करना  होगा  या फिर अन्ना को इस टीम को ही भंग करना चाहिए और एक नए सिरे से आन्दोलन आगे बढ़ाना चाहिए . क्यों कि आज जन समूह भ्रष्टाचार को नहीं बल्कि टीम अन्ना के कलह को ख़तम  होने का सोच रहा है .

Comments

Popular posts from this blog

"आप" के मुसाफिर तू भागना सम्भल के.... !!

"बन्दे है हम उसके हम पर किसका जोर" अगर ये गीत खुद पर सटीक नहीं लग रहा है तो ये सोचिये  कि इस गीत को अरविन्द केजरीवाल गाये  तो कैसा रहेगा? उदारहरण जीवांत लगता है ! बल्कि उनकी जीत के लिए जनता ने पुरजोर साथ दिया. पर क्या जीत इतनी स्वादिष्ट होती है कि भूख की सीमा ही ना रहे? क्या AAP को देश जीतने की जरुरत है ? या जनता की जुबान से ये कहु कि क्या देश कि कमान आम आदमी पार्टी के हाथ में देनी चाहिए? स्तिथि देखते हुए अभी तो मै खुल्ला विरोध करुगा. हम लोग कही भी काम करे चाहे वो कॉर्पोरेट हो या कोई सरकारी विभाग, पदोन्नति हमारे काम और काम की  गुणवत्ता के आधार पर होती है. केजरीवाल जी अब राजनीति आपका विभाग है, और दिल्ली आपका ऑफिस. नीयत साफ़ है तो आपका पहला काम दिल्ली की नीतियो को सही दिशा और लोगो कि दशा सुधारने का होना चाहिए, काम और काम की गुणवत्ता दिखानी चाहिए, आपको अभी से लोकसभा चुनाव में उतरकर पदोन्नति कि राह में नहीं चलना चाहिए. जब आम आदमी राजनीति में उतरता है तो उसे नौसिखिया कहते है, आपकी पार्टी में तो सभी राजनीति के नौसिखिये है. क्या ऐसा नहीं लगता कि आपने जो चुनावी वादे किये थे उनमे नौस

परदे हटा और देख ले !!

मै लिख रहा हु क्योंकि आज मै लिखने को तैयार हुआ,  अगर आप पढ़ रहे  तो सिर्फ क्युकि आप पढ़ने को तैयार है ! लेकिन हम देख नहीं सकते क्युकि आज हम देखने को तैयार नहीं। ईश्वर, अल्लाह, जीसस, भगवान, देवता सुनते सुनते ३० की दहलीज़ छूने वाला हु, हें ३० ! यकीन नहीं होता ना !! खैर ये मेरी लीला है. आज लीलाधर असल लीलाधरो की खोज में है, और मै ही क्यों ! क्या आपको अपने भगवान् से नहीं मिलना? देखो....  विज्ञान और आध्यात्म की तो बस की नहीं ! मेरे पास बीच का रास्ता है  अगर इच्छुक हो !!....... तो आईये मिलते है. बोलिये "हम बहुत ख़ुद्दार, घमंडी, और बहानेबाज़ी के गोल्डमेडलिस्ट है". अरे बोलिये!! कम से कम १० बार यही बोलिये। यकीन मानिये सुकून मिलेगा और है ही तभी तो इंसान है ! चलिए स्पष्टीकरण भी देता हु, मैंने अनेक लोगो से पूछा, भाई क्या आप भगवान् में विश्वास रखते है, अगर हाँ, तो बताइये वो है कहाँ ? जवाब - वो हर जगह है !! तुम्हारी कसम बचपन से यही जवाब सुनता आ रहा था।  फिर से यही सुना तो मै झुलझुला उठा, फिर पूछा- भाई वो कौन सी जगह है, जहा मै उनसे मिल सकू. बोला - मंदिर, मस्जिद, चर्च सब भगवान् के ही तो घर है

वो कितने दूरदर्शी थे !!

वो कितने दूरदर्शी थे ! कितनी सुलझी सोच थी ! वो जानते थे जगत का निर्माण सिर्फ उनके लिए ही नहीं हुआ. इंसान, जानवर, प्रकृति सभी की बराबर हिस्सेदारी है. वो ये भी ज ानते थे कि एक समय बुद्धिजीवी इंसान संपूर्ण जगत में अपनी हक़ की बात करेगा ! वो, मिल-जुल कर रहने वाले जंगलो और जानवरो के बीच घुस कर अपनी चौखट खडी कर देगा। वो जानते थे इंसान सिर्फ ईश्वर के सामने ही झुक सकता है तो क्यों ना प्रकृति और जानवरो को ईश्वर का अंश बना दिया जाये ताकि इंसानो का प्रकृति, जानवरो के प्रति सम्मान बना रहे । और किया भी !!  हाथी, बाज़, शेर, मयूर से लेकर चूहों तक सभी को ईश्वर का वाहन बनाया। वृक्षो में पीपल, बरगद, चन्दन इत्यादि में ईश्वर का वास बताया। गंगा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों को देवियो का रूप बनाया। एक बच्चे को उसकी माँ ही दूध पिलाती है, और एक परिवार को सुबह-शाम दूध पिलाने वाली गाय को जगत माँ बनाया। तो क्या उन्होंने भूल की ? अरे मानवजाति, भूलो के कर्ता-धर्ता तो सिर्फ हम ही है। हम इंसानो ने सिर्फ एक काम ही किया है "व्यवसाय". जंगलो में नींव डाली, जानवरो के घरो पर अपनी चौखट बना डाली, पेड़ो को काट डाल