ईश्वर ने ब्रहमाण्ड रचा, प्रकति बनाई , मनुष्य जैसे बुद्धिजीवी प्राणी की संरचना और उसे जीवन जीने को छोड़ दिया . वो हमारे और इस ब्रहमाण्ड के विधाता है . और हम क्या? हमने क्या किया ? धरती का जो कोना मिला वहा पैर पसार लिए . संबंध बनाये, परिवार बनाये, समाज बनाये, और कई समाजो को मिलाकर देश बना दिए . तो वास्तविक रूप से देश के विधाता हम है . तो जरा इस बात का ध्यान रखिये की आप ही "भारत भाग्य विधाता है ".
जिस तरह के समाज का निर्माण हमने किया है उसमे सुखी के दो तरीके है, पहला पैसा, और दसरा ज्ञान। अगर आप ज्ञानि है तो धनि भी होगे और एक संतोषी व्यक्ति की तरह खुशहाल जीवन जी लेगे .और अगर आप सिर्फ धन के महत्वाकांछी है तो पैसो का पहाड़ बनाने के बाद भी आप कही ना कही से और पैसा कुरेदते नजर आयेगे . और जब पैसा कुरेदा जाता है तो वहा खरोंच मेहनत की नहीं बल्कि भ्रष्टाचार की लगती है !!
आज देश इसी खरोच को महसूस कर रहा है . आखिर इस देश मे इतना भ्रष्टाचार क्यों ? जवाब शायद कोई अर्थशात्री दे सके , पर दुर्भाग्य हमारा तो अर्थशात्री भी मूक है ! मेरी राय में देश में आर्थिक समन्वय नहीं है। यहाँ गरीब और दरिद्र हो रहा है। अमीर और अमीर हो रहा है। और मध्यम वर्ग प्रगति के उस रास्ते पर है जहा उसके सपने उसके अंत के साथ ही दफ़न हो जाते है। जरा बताइए प्रगति किस दिशा में हुई ... फूल की चमक और बढ़ गयी है और जड़े पूरी तरह सूख रही है। इस चमक को "Shining India" नहीं कहा जा सकता।
आज महगाई और भ्रष्टाचार दो समस्या हमारे सामने है, और कही न कही से एक दूसरी की पूरक है। भ्रष्टाचार होगा तो महगाई बढ़ेगी , और महगाई होगी तो भ्रष्टाचार ! क्यों की हमारे कानून की पकड़ लाचार है।
" लोकपाल लाओ देश बचाओ", " लोकपाल लाओ देश बचाओ", के नारे शायद इसी कानून की भ्रष्टाचार पर पकड़ को मजबूत करने के लिए लगाये गए थे। लेकिन लोगो के गले सूख लेकिन सरकार टस से मस ना हुयी। लाखो हजारो करोड़ की संपत्ति के घोटालो से महगाई बढ़ने की बात तो समझ है लेकिन महगाई बढ़ने से और भ्रष्टाचार होने की बात कुछ अटपटी जरुर लगती है। पर कही न कही ये बात सच्चाई को जरुर छू जाती है। भ्रष्टाचार की इस कड़ी मध्यम वर्ग(Middle Class) जिम्मेदार होता है। अगर धन के लालची और आपी लोगो को मध्यम वर्ग से हटाकर देखा जाये , कि आखिर मध्यम वर्ग के सरकारी अफसर से लेकर बाबू, ठेकेदार भ्रष्टाचार और घूसखोरी क्यों करते है? मुझे उनकी मूल जरूरते, नैतिक जिम्मेदारिया, और समाज में खुद की चमकती साख की होड़ ही मुख्य वजह लगती है !
उन मध्यम वर्ग के सरकारी कर्मचारियों के परिवार पर नजर डालिए जिनकी मासिक बीस हज़ार से चालीश तक है। जिनको अपने एक बेटे, दो बेटियों को खुशहाल जीवन देने की जिम्मेदारी है। अगर एक आदर्श नागरिक की तरह जिम्मेदारी निभाई जाये, तो पहली जिम्मेदारी अपने बच्चो को पूर्ण शिक्षा देकर उनको खुद के पैरो पर खड़ा करने की होती है। और दूसरी बेटियों की शादी ! लेकिन इन दोनों जिम्मेदारियों के सामने महगाई और हमारी बनाई कुरीतिया मुह फाड़ कर खड़ी है। डाईन महगाई बच्चो कि एक समान शिक्षा में रोढा बन जाती है, और दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतिया बेटियों की शादी को एक बोझ बना देती है। फलस्वरुप मध्यम वर्गीय परिवार को अपनी जिम्मेदारियों के साथ समझौता करना पड़ता है, क्यों की सीमित आय उनकी मूल जिम्मेदारियों के खर्चे के सामने बौनी साबित होती है। लडको की शिक्षा पर ज्यादा से ज्यादा आर्थिक व्यय किया जाता है, वही लडकियों की ख़ुशी के लिए दहेज़ की मोटी रकम जुटाने पर जोर दिया जाता है। ऐसे समझौते भारत को पुरुष प्रधान देश बनाने पर मजबूर करते है। आखिर आम आदमी ऐसे समझौते ना करे तो क्या करे ? शायद भ्रष्टाचार? जी हां ऐसा ही होता है। मध्यम वर्ग जरा भी गुंजाइश देखकर भ्रष्टाचार से अपनी जेब गरम करने में जुट जाता है। और बात फिर वही आकर अटक जाती है - भ्रष्टाचार--> महगाई --->भ्रष्टाचार ! और ऐसी स्तिथि को इंजीनियरिंग की भाषा में "Deadlock" कहते है।
मेरी राय में सुधार हर एक स्तर पर होना चाहिए। समाज और कानून दोनों में संसोधन की जरुरत है। आखिर समाज का निर्माण हमने किया है तो हमें ही दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियों को मिटाना चाहिए जिससे की आम आदमी की जेब से दहेज़ का बोझ हट जाये। दूसरा सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सशक्त कानून जिससे उच्च वर्ग में होने वाले लाखो हजारो करोड़ की संपत्ति के घोटालो पर लगाम लगे , और महगाई अपने न्यूनतम स्तर पर आ जाये !!
आज देश इसी खरोच को महसूस कर रहा है . आखिर इस देश मे इतना भ्रष्टाचार क्यों ? जवाब शायद कोई अर्थशात्री दे सके , पर दुर्भाग्य हमारा तो अर्थशात्री भी मूक है ! मेरी राय में देश में आर्थिक समन्वय नहीं है। यहाँ गरीब और दरिद्र हो रहा है। अमीर और अमीर हो रहा है। और मध्यम वर्ग प्रगति के उस रास्ते पर है जहा उसके सपने उसके अंत के साथ ही दफ़न हो जाते है। जरा बताइए प्रगति किस दिशा में हुई ... फूल की चमक और बढ़ गयी है और जड़े पूरी तरह सूख रही है। इस चमक को "Shining India" नहीं कहा जा सकता।
आज महगाई और भ्रष्टाचार दो समस्या हमारे सामने है, और कही न कही से एक दूसरी की पूरक है। भ्रष्टाचार होगा तो महगाई बढ़ेगी , और महगाई होगी तो भ्रष्टाचार ! क्यों की हमारे कानून की पकड़ लाचार है।
" लोकपाल लाओ देश बचाओ", " लोकपाल लाओ देश बचाओ", के नारे शायद इसी कानून की भ्रष्टाचार पर पकड़ को मजबूत करने के लिए लगाये गए थे। लेकिन लोगो के गले सूख लेकिन सरकार टस से मस ना हुयी। लाखो हजारो करोड़ की संपत्ति के घोटालो से महगाई बढ़ने की बात तो समझ है लेकिन महगाई बढ़ने से और भ्रष्टाचार होने की बात कुछ अटपटी जरुर लगती है। पर कही न कही ये बात सच्चाई को जरुर छू जाती है। भ्रष्टाचार की इस कड़ी मध्यम वर्ग(Middle Class) जिम्मेदार होता है। अगर धन के लालची और आपी लोगो को मध्यम वर्ग से हटाकर देखा जाये , कि आखिर मध्यम वर्ग के सरकारी अफसर से लेकर बाबू, ठेकेदार भ्रष्टाचार और घूसखोरी क्यों करते है? मुझे उनकी मूल जरूरते, नैतिक जिम्मेदारिया, और समाज में खुद की चमकती साख की होड़ ही मुख्य वजह लगती है !
उन मध्यम वर्ग के सरकारी कर्मचारियों के परिवार पर नजर डालिए जिनकी मासिक बीस हज़ार से चालीश तक है। जिनको अपने एक बेटे, दो बेटियों को खुशहाल जीवन देने की जिम्मेदारी है। अगर एक आदर्श नागरिक की तरह जिम्मेदारी निभाई जाये, तो पहली जिम्मेदारी अपने बच्चो को पूर्ण शिक्षा देकर उनको खुद के पैरो पर खड़ा करने की होती है। और दूसरी बेटियों की शादी ! लेकिन इन दोनों जिम्मेदारियों के सामने महगाई और हमारी बनाई कुरीतिया मुह फाड़ कर खड़ी है। डाईन महगाई बच्चो कि एक समान शिक्षा में रोढा बन जाती है, और दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतिया बेटियों की शादी को एक बोझ बना देती है। फलस्वरुप मध्यम वर्गीय परिवार को अपनी जिम्मेदारियों के साथ समझौता करना पड़ता है, क्यों की सीमित आय उनकी मूल जिम्मेदारियों के खर्चे के सामने बौनी साबित होती है। लडको की शिक्षा पर ज्यादा से ज्यादा आर्थिक व्यय किया जाता है, वही लडकियों की ख़ुशी के लिए दहेज़ की मोटी रकम जुटाने पर जोर दिया जाता है। ऐसे समझौते भारत को पुरुष प्रधान देश बनाने पर मजबूर करते है। आखिर आम आदमी ऐसे समझौते ना करे तो क्या करे ? शायद भ्रष्टाचार? जी हां ऐसा ही होता है। मध्यम वर्ग जरा भी गुंजाइश देखकर भ्रष्टाचार से अपनी जेब गरम करने में जुट जाता है। और बात फिर वही आकर अटक जाती है - भ्रष्टाचार--> महगाई --->भ्रष्टाचार ! और ऐसी स्तिथि को इंजीनियरिंग की भाषा में "Deadlock" कहते है।
मेरी राय में सुधार हर एक स्तर पर होना चाहिए। समाज और कानून दोनों में संसोधन की जरुरत है। आखिर समाज का निर्माण हमने किया है तो हमें ही दहेज़ प्रथा जैसी कुरीतियों को मिटाना चाहिए जिससे की आम आदमी की जेब से दहेज़ का बोझ हट जाये। दूसरा सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सशक्त कानून जिससे उच्च वर्ग में होने वाले लाखो हजारो करोड़ की संपत्ति के घोटालो पर लगाम लगे , और महगाई अपने न्यूनतम स्तर पर आ जाये !!
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