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तू ही बता मै कौन हु !!

क्या पुकारू मै आज तुझे?
"अल्लाह" बोलू ?
तो हिन्दू,  पत्थर हो जायेगा !
अगर बोलू "भगवान् "?
तो मुस्लिम , कट्टर हो जायेगा  !

तो लो आज मै मौन हू . तो लो आज मै मौन हू .
तू ही बता मै कौन हू . तू ही बता मै कौन हू .


वाह विधाता, क्या खूब  दुनिया बसाई है .
इंसान और इंसानियत के बीच खाई है.
लाल रक्त सबकी रगों में, ऐसी आग लगाई है.
क्या चख के खून, वो हुआ चटोरा ?
जो मची खून की खून से लड़ाई है .

रही नहीं इंसानियत मुझमे, बन कर बैठा बौन हु.
ओ ! ज्ञानदाता, विश्व विधाता ।।
 तू ही बता मै कौन हु, तू ही बता मै कौन हु।।


कहा रहा इंसान अब  तेरा, इंसानियत तो कोसो दूर है .
आज सुन्दर सूरत शैतान की, पर जेहन नशे में चूर है .
जब दिन का  सूरज  थक कर, रात अँधेरा चढ़ जाता है.
एक इंसान किसकी फिराक में, टप टप लार टपकाता है .
बहु, बेटियों और बच्चो पर, वो हवसी घात लगता है.
उनकी लुट जाती इज्ज़त, और ये लूट कर इज्ज़त गवाता है.
तो क्यों ना कहु मै आज इंसान, शैतान की संज्ञा पाता है .

लो धर काटी अपनी जिव्हा, अब हो जाता मै  मौन हु.
नहीं कहता खुद को इंसान,
अब तू ही बता मै कौन हु. तू ही बता मै कौन हु.


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