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"श" से शरीर "श" से शैतान !

क्या कहते हो खुद को तुम
शत प्रतिशत इंसान ?
याद करो पिछली दफा
तुम पर हावी क्रूर क्रोध
सुन्न होता, सदाचार
अकड़ती हुयी, आवाज
बौखलाती, जिज्ञासा
भौकती हुयी भाषा
सब अंग तैयार
बस होना था प्रहार
वो वक़्त रहते अगर,
धैर्य ना आता तो !
क्या कमी रह जाती,
तुम्हे बनने में शैतान ?

शैतान के तो कई रूप है
समाज हुआ गिरफ्त
अच्छाई हो या सच्चाई
सब खाती है शिक़स्त
याद है वो जेसिका !
मस्त थी महफ़िल
जब वो मरी थी !
गानो की धुनो के बीच
धाँय से गोली चली थी !!
सभी ने देखा और सुना
 बदल गये बोल
जब डर ने जाल बुना
कुछ बन बैठे अंधे,
बाकी सब थे बहरे !
या फिर य़ू कहु कि
सातसौ कोटि सर
चौदहसौ  करोड़ चेहरे !
यही नहीं शैतान का साया तो,
हर  दिन दून हुआ है
अब मरता सिर्फ शरीर नहीं,
रिश्तो का भी खून हुआ है
याद है ! आरुषि भी मरी थी
'म' से "माँ", 'म' से "ममता"
क्रूरता तो देखो शैतान  की
पूरी परिभाषा ही बदल गई,
'म' से "माँ" की ममता ही,
'म' से "मौत" दे गई !!

जन्म तो शरीर का होता है
गुणो से गुथ कर
हम बन पाते है इंसान !
दृढ़ रहो, बचाओ इंसानियत
क्यों कि अगर हार गये
तो बचेगा बस,
"श" से शरीर "श" से शैतान !!


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