Skip to main content

"रावण"- अमर था, अमर है, और अमर रहेगा ?

मेरे प्रिय पाखंडी भारतीय,

 स्वम् अपनी हार को जीत की तरह परोस कर उसका पर्व मनाना पाखंड नहीं तो क्या ? सुनकर हैरानी हुई?  सबूत है  मेरे पास या यूँ  कहे तर्क ! तो  तर्क ये कहता है या तो रावण, राम, और उपन्यासों के रचयिता सफ़ेद झूठे है या फिर शत-प्रतिशत सच्चे !

                     उपन्यासों के अनुसार रावण को स्वम्  जगत गुरु ब्रम्हा ने 'अमर ' होने का वरदान दिया था ! इसके बावजूद भी रावण मारा गया, तो क्या ब्रम्हा के वरदानी वादें आज के राजनीतिक वादों की तरह ही झूठे हुआ करते थे? कुछ बुद्धिजीवी कहते है हाँ रावण को अमरता का वरदान था लेकिन कुछ सशर्तो पर जैसे उसका वध ना कोई असुर कर सके और ना ही कोई देवता ! तो क्या फिर भगवान् श्री राम सिर्फ "राम" ही थे? या फिर सिर्फ रावण के वध की बुनियाद पर ही वो "भगवान श्री राम" कहलाये ?  तो क्या अगर-मगर रावण  का वध भगवान् राम द्वारा ना होता तो क्या वो सिर्फ "राजा राम" की तरह ही जाने जाते ? सवाल कई  है और तर्क़संगत भी !! इस तर्क से तो रावण, राम, रचयिता में से कम से कम  कोई एक तो झूठा सिद्ध होता है !! वो आप स्वम् ही ढूढ़िये ।

                  खैर ! खुशखबरी है ! तर्क एक और भी है जो सभी को सार्थक सच्चा साबित करता है. हाँ ये सच है ब्रम्हा ने रावण को अमरता का वरदान दिया था, सच ये भी है की राम सदा से ही भगवान् राम है, ये भी सच है की रावण का वध भी हुआ, लेकिन एक सच ये भी है की रावण "अमर" ही है !

                 देखिये अंत शरीर का होता है, सोच, गुण, अवगुण ये कभी नहीं मरते। ये हर दिन उगते है, फैलते है, और समाज के लोगो द्वारा अपनाये जाते है. ठीक वैसे ही रावण के शरीर अंत हुआ लेकिन उसके अवगुण "अहंकार", "क्रोध", "क्रूरता", "अमानवता", "अन्याय", "लोभ", "स्वार्थ" को आज भी हमने पाल के रखा है.

तो बताइये क्या अब आप सच में रावण  मार सकते है या फिर सिर्फ पुतला फूक लेना है जीत है. आज मैं  जलता हुआ पुतला देखकर यही कहूंगा कि "रावण" अमर था, अमर है, और अमर रहेगा।



Comments

Popular posts from this blog

"आप" के मुसाफिर तू भागना सम्भल के.... !!

"बन्दे है हम उसके हम पर किसका जोर" अगर ये गीत खुद पर सटीक नहीं लग रहा है तो ये सोचिये  कि इस गीत को अरविन्द केजरीवाल गाये  तो कैसा रहेगा? उदारहरण जीवांत लगता है ! बल्कि उनकी जीत के लिए जनता ने पुरजोर साथ दिया. पर क्या जीत इतनी स्वादिष्ट होती है कि भूख की सीमा ही ना रहे? क्या AAP को देश जीतने की जरुरत है ? या जनता की जुबान से ये कहु कि क्या देश कि कमान आम आदमी पार्टी के हाथ में देनी चाहिए? स्तिथि देखते हुए अभी तो मै खुल्ला विरोध करुगा. हम लोग कही भी काम करे चाहे वो कॉर्पोरेट हो या कोई सरकारी विभाग, पदोन्नति हमारे काम और काम की  गुणवत्ता के आधार पर होती है. केजरीवाल जी अब राजनीति आपका विभाग है, और दिल्ली आपका ऑफिस. नीयत साफ़ है तो आपका पहला काम दिल्ली की नीतियो को सही दिशा और लोगो कि दशा सुधारने का होना चाहिए, काम और काम की गुणवत्ता दिखानी चाहिए, आपको अभी से लोकसभा चुनाव में उतरकर पदोन्नति कि राह में नहीं चलना चाहिए. जब आम आदमी राजनीति में उतरता है तो उसे नौसिखिया कहते है, आपकी पार्टी में तो सभी राजनीति के नौसिखिये है. क्या ऐसा नहीं लगता कि आपने जो चुनावी वादे किये थे...

वो कितने दूरदर्शी थे !!

वो कितने दूरदर्शी थे ! कितनी सुलझी सोच थी ! वो जानते थे जगत का निर्माण सिर्फ उनके लिए ही नहीं हुआ. इंसान, जानवर, प्रकृति सभी की बराबर हिस्सेदारी है. वो ये भी ज ानते थे कि एक समय बुद्धिजीवी इंसान संपूर्ण जगत में अपनी हक़ की बात करेगा ! वो, मिल-जुल कर रहने वाले जंगलो और जानवरो के बीच घुस कर अपनी चौखट खडी कर देगा। वो जानते थे इंसान सिर्फ ईश्वर के सामने ही झुक सकता है तो क्यों ना प्रकृति और जानवरो को ईश्वर का अंश बना दिया जाये ताकि इंसानो का प्रकृति, जानवरो के प्रति सम्मान बना रहे । और किया भी !!  हाथी, बाज़, शेर, मयूर से लेकर चूहों तक सभी को ईश्वर का वाहन बनाया। वृक्षो में पीपल, बरगद, चन्दन इत्यादि में ईश्वर का वास बताया। गंगा, यमुना, सरस्वती आदि नदियों को देवियो का रूप बनाया। एक बच्चे को उसकी माँ ही दूध पिलाती है, और एक परिवार को सुबह-शाम दूध पिलाने वाली गाय को जगत माँ बनाया। तो क्या उन्होंने भूल की ? अरे मानवजाति, भूलो के कर्ता-धर्ता तो सिर्फ हम ही है। हम इंसानो ने सिर्फ एक काम ही किया है "व्यवसाय". जंगलो में नींव डाली, जानवरो के घरो पर अपनी चौखट बना डाली, पेड़ो को काट डाल...

परदे हटा और देख ले !!

मै लिख रहा हु क्योंकि आज मै लिखने को तैयार हुआ,  अगर आप पढ़ रहे  तो सिर्फ क्युकि आप पढ़ने को तैयार है ! लेकिन हम देख नहीं सकते क्युकि आज हम देखने को तैयार नहीं। ईश्वर, अल्लाह, जीसस, भगवान, देवता सुनते सुनते ३० की दहलीज़ छूने वाला हु, हें ३० ! यकीन नहीं होता ना !! खैर ये मेरी लीला है. आज लीलाधर असल लीलाधरो की खोज में है, और मै ही क्यों ! क्या आपको अपने भगवान् से नहीं मिलना? देखो....  विज्ञान और आध्यात्म की तो बस की नहीं ! मेरे पास बीच का रास्ता है  अगर इच्छुक हो !!....... तो आईये मिलते है. बोलिये "हम बहुत ख़ुद्दार, घमंडी, और बहानेबाज़ी के गोल्डमेडलिस्ट है". अरे बोलिये!! कम से कम १० बार यही बोलिये। यकीन मानिये सुकून मिलेगा और है ही तभी तो इंसान है ! चलिए स्पष्टीकरण भी देता हु, मैंने अनेक लोगो से पूछा, भाई क्या आप भगवान् में विश्वास रखते है, अगर हाँ, तो बताइये वो है कहाँ ? जवाब - वो हर जगह है !! तुम्हारी कसम बचपन से यही जवाब सुनता आ रहा था।  फिर से यही सुना तो मै झुलझुला उठा, फिर पूछा- भाई वो कौन सी जगह है, जहा मै उनसे मिल सकू. बोला - मंदिर, मस्जिद, चर्च सब भग...